Wednesday, November 10, 2021

टोक्यो पैरालंपिक खिलाड़ियों की दिल को छूने वाली कहानी:

टोक्यो पैरालंपिक- 2020 में भारत को पदक दिलाकर देश का गौरव बढ़ाने वालों की दिलचस्प कहानी है। पैरालिंपियन की सफलता का सफर भी किसी प्रेरणापुंज के सहारे आगे बढ़ा है। गोल्ड मेडलिस्ट अवनि लखेरा अपनी मां को देखकर आगे बढ़ती हैं, तो रजत पदक जीतने वाली टेबल टेनिस प्लेयर भाविना पटेल ने जब ब्लाइंड बच्चों को हालात से लड़ते देखा तो खुद हिम्मत जुटाई और अपने लिए नया रास्ता चुना। मैदान में देश को पदक दिलाकर लौटे खिलाड़ियों को आज मेरठ में सम्मानित किया जा रहा है। इस सम्मान से पहले दैनिक भास्कर की पदक विजेताओं की कहानियों की विशेष कवरेज…

नहीं मिल रहा था इंडिविजुअल गेम, तब शूटिंग अपनाया
पैरालंपिक में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले मनीष नरवाल की प्रेरणा उनकी मां हैं। मनीष कहते हैं मम्मी ही मेरी प्रेरणा हैं, बचपन से ही खेलता था। शुरूआत में मुझे कोई खेल नहीं मिल रहा था, तब किसी ने इंडिविजुअल गेम में शूटिंग बताया और मैं इसे अपना सका। मेरे पिताजी, छोटे-भाई बहन सभी खिलाड़ी हैं। अभी 4 से 5 ओलिंपिक खेलने की इच्छा है, अपनी कमियों को सुधारना चाहता हूं। मैं खिलाड़ी नहीं बन पाता तो आज मैं पिता का बिजनेस संभालता। लेकिन, जो मान सम्मान मुझे खेलों से मिला वो बिजनेस से कभी नहीं मिलता। देश का झंडा लेकर चलना खुद में गौरव का अहसास कराता है।

निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली अवनि कहती हैं मेरा परिवार ही मेरी प्रेरणा है। बचपन से मम्मी मेरे साथ हर मैच में गई हैं। अगर निशानेबाज नहीं बनती तो लॉ फील्ड में कहीं होती। हो सकता है भविष्य 2024 के बाद मैं लॉ क्षेत्र में नजर आऊं। जब गोल्ड मिला तो पहले बहुत नम थी, काफी इमोशनल थी पहला मैच, पहली बार गोल्ड मिला तो भरोसा नहीं हो रहा था। जब मैदान में नेशनल एंथम हो रहा था तो समझ नहीं पा रही थी क्या करुं। दोनों ही मैच में मेरे साथ यही फीलिंग रही।

टेबिल टेनिस में रजत पदक जीतने वाली भाविना पटेल ने फन के तौर पर टेबिल टेनिस खेलना शुरू किया था। भाविना कहती हैं यही मेरी पहचान बन जाएगा ये सोचा नहीं था। 2004-5 में अहमदाबाद के ब्लाइंड पीपुल एसो. में मैंने वहां के लोगों को टेबिल टेनिस(टीटी) खेलते देखा। उस दृश्य ने मुझे झकझोर दिया। जब ये लोग खेल सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं। वहीं से मैंने टीटी खेलना शुरू किया। अगर मैं खिलाड़ी नहीं होती तो आज एक सिंगर हो सकती थी। क्योंकि मुझे गायन का शौक है। गाना सीखा नहीं है मगर गाती रही हूं। पुराने गीत गाना पसंद करती हूं। बाकी कुकिंग करती हूं, खेल के लिए अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए गाती भी हूं।

इच्छाशक्ति से मिलती है प्रेरणा
रजत पदक विजेता सिंघराज अधाना कहते हैं मेरे दादाजी ने विश्व युद्ध में भाग लिया। उनके किस्से सुनकर हमेशा नया साहस मिलता। तभी ध्येय बना लिया कि अपनी कमियों के साथ मैं जो कर सकता हूं वो करुंगा और आगे बढूंगा। हर दिव्यांग खिलाड़ी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सिस्टम से लड़ने की होती है। ईश्वर ने हमसे कुछ लिया है तो कुछ दिया है। ईश्वर ने मेरे जैसे कई खिलाड़ियों को इच्छाशक्ति का वह वरदान दिया है। मैंने हर हालत में देश के लिए कुछ करने का सपना देखा था वो साकार हुआ है।

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