Saturday, December 4, 2021

टंट्या मामा की कर्मस्थली पातालपानी से रिपोर्ट....अंग्रेजों की ट्रेनों को रोककर माल खाली करा लेते थे, सारा धन-अनाज गरीबों में बांट देते थे.....

 

क्रांतिकारी टंट्या मामा की कर्मस्थली इंदौर के करीब पातालपानी है। यहां वे अंग्रेजों की ट्रेनों को रोककर उनमें रखा धन, अनाज, तेल और दूसरी चीजें निकाल लेते थे, इसके बाद गरीबों और आदिवासियों में बांट देते थे। अंग्रेजों के हाथ आने के बाद उन्हें फांसी दे दी गई। उनके शव को परिवार को न सौंपकर पातालपानी के क्षेत्र में फेंक दिया गया। इस जमीन से उनका पुराना नाता है। आइए, जानते हैं कि यहां के लोगों से उनका क्या जुड़ाव है? यहां बने उनके मंदिर की क्या-क्या मान्यता है…?

पातालपानी जनसेवा समिति के संरक्षक रामकरण भाभर के मुताबिक टंट्या मामा का जन्म खंडवा में हुआ था। शोषण और अत्याचार के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई। खंडवा जिले से रेलवे मार्ग के रास्ते वे पातालपानी पहुंचे। यहां उन्होंने अंग्रेजों की ट्रेनों को रोक कर लूटा। ट्रेन में रखा माल गरीब जनता को बांटा। उन्होंने सूदखोरों और जमींदारों के खिलाफ भी आवाज उठाई। भील समाज के आदिवासी लोग टंट्या मामा को पूजते आ रहे हैं।

10 फीट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा 10 दिन में हुई तैयार
पातालपानी में टंट्या मामा की जो प्रतिमा थी, उसे इंदौर भेजा गया। उसके स्थान पर अष्टधातु की 700 किलो वजनी प्रतिमा स्थापित की गई है। इसका अनावरण राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने किया है। मुख्यमंत्री से काफी वक्त से यहां दूसरी प्रतिमा लगाए जाने की मांग भी की जा रही थी। यह प्रतिमा 10 फीट ऊंची है। इसे 10 दिन में तैयार किया गया। ग्वालियर से बनकर ये प्रतिमा यहां लाई गई है।

कोदरिया मंडल के मंडल मंत्री बीरबल डावर ने बताया कि यहां जो प्रतिमा पहले लगी थी, उसे इंदौर में भंवरकुआं चौराहे पर लगाया जाएगा। आदिवासी समाज के लिए गौरव की बात है। टंट्या मामा को जो सम्मान मिला है, उससे समाज प्रफुल्लित है।

मंदिर के बाहर मौजूद भील समाज के लोग
400 साल पुराना है मंदिर, टंट्या मामा करते थे सेवा
पातालपानी को टंट्या मामा की कर्मभूमि कहा जाता है। यहां 150 साल पुराने मीटर गेज रेलवे ट्रैक किनारे मंदिर बना है। मंदिर में कालका माता, भैरव भगवान के साथ ही टंट्या मामा और उनके मंत्री भुरखीलाल की पत्थर और लकड़ी की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

मंदिर के पुजारी राम अवतार कुमायुं के अनुसार मंदिर का इतिहास 400 साल पुराना है। यहां कालका माता और भैरव भगवान का मंदिर पहले से स्थापित है। यहां टंट्या मामा मां की सेवा करते थे। मां से ही उन्हें शक्ति मिली। जितना भी अंग्रेजों का धन-अनाज-तेल व अन्य सामान आता था, उसे वे खाई में खाली करवा लेते थे। इसके बाद सभी वस्तुओं को गरीबों में वितरित करवा देते थे। इसके बाद से वे सभी गरीब और आदिवासियों के मसीहा हो गए।

टंट्या मामा का मंदिर।

मंदिर में टंट्या मामा को लगाते हैं नैवेद्य, ट्रेन भी देती ही सलामी
पुजारी ने बताया कि 4 दिसंबर को टंट्या मामा की पुण्यतिथि होती है। काफी लोग यहां दूर-दूर से उनका पूजन-अर्चन करने आते हैं। उन्हें फूल-माला, नैवेद्य चढ़ाते हैं। सभी उनका पूजन आस्था के साथ करते हैं।

मंदिर में पत्थर और लकड़ी की हैं प्रतिमाएं
मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां माता कालका, भगवान भैरव, टंट्या मामा और उनके मंत्री की दीवार पर पत्थर की प्रतिमा बनी है। वहीं, उसके ठीक नीचे चारों की लकड़ी की प्रतिमा स्थापित हैं। लकड़ी की मूर्तियां बाद में बनाई गई हैं। इसे बने हुए करीब 100 साल से ज्यादा हो गए हैं, जबकि पत्थर की प्रतिमाओं को 400 साल हो चुके हैं।

 

FULL FORM HUB

About FULL FORM HUB

Author Description here.. Nulla sagittis convallis. Curabitur consequat. Quisque metus enim, venenatis fermentum, mollis in, porta et, nibh. Duis vulputate elit in elit. Mauris dictum libero id justo.